Wednesday, May 20, 2009
तुम्हे रात-दिन क्यूँ मैं सोचा करूँ।तेरे ख्वाब ही अक्सर देखा करूँ॥नहीं के हमें दिल लगना नही थागली हुस्न की हमको जाना नही थाबना के खुदा फ़िर क्यूँ सजदा करूँ ॥तेरे ख्वाब ही .......अभी दिल हमारा धड़कना था सिखातुम्हारी नज़र से बचाना किसीकामैं जिन्दा रहूँ या के तौबा करूँ ॥तुम्हे रात दिन ........हमारी मोहब्बत के चर्चे है देखोतुम्हे जानते है मेरे नाम से वोहै खाई कसम क्यूँ मैं धोखा करूँ ॥तुम्हे रात दिन .....तेरे ख्वाब ही अक्सर ....
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment